Sunday, 30 December 2007
एसोसिएशन फॉर इंडिया'एस देवेलोप्मेंट (Association for India's Development) के कार्यकर्ताओं ने गहरी चिंता व्यक्त की क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने डॉ सेन की 'बेल' याचिका न मंजूर कर दी।
डॉ सेन १४ मई २००७ को छत्तीसगढ़ स्पेशल पब्लिक सिक्यूरिटी एक्ट २००६ के तहत गिरफ्तार हुए थे। यह छत्तीसगढ़ का एक खतरनाक और अमंविये कानून है जो प्रदेश सरकार को खुली छूट देता है कि किसी को भी नाक्साल्वादियों से सम्पर्क रखने के शक कि बुनियाद पर गिरफ्तार कर लिया जाये। डॉ सेन का कहना है कि उन्होंने प्रदेश सरकार की संस्तुति के बाद ही जेल में कैद नाक्साल्वादियों से सम्पर्क किया था। आज तक प्रदेश सरकार डॉ सेन के खिलाफ कोई ठोस सबूत नही जुटा पाई है।
हालांकि डॉ सेन नाक्सालवाद के नाम पर बिना सबूत ७ महीनों से गिरफ्तार है परन्तु प्रदेश में न्याय व्यवस्था बिगड़ती जा रही है। दंतेवाडा जेल कारागार में सुरक्षा व्यवस्था का टूटना, और बढ़ता हुआ हिंसा से जुदा मृत्यु-दर इस बात की पुष्टि करता है।
डॉ बिनायक सेन च्रिस्तियन मेडिकल कॉलेज से डाक्टरी पढ़ के छत्तीसगढ़ में जन-स्वास्थ्य पर सरह्निये कार्य कर रहे थे। डॉ सेन छत्तीसगढ़ के सामाजिक न्याय के लिए जन संगठन (प यू सी ल) के सचिव हैं। वें पिछले २५ सालों से समाज सेवा में सक्रिए भूमिका अदा कर रहे हैं, और दल्ली राज्घारा में खानों में काम करने वालों के लिए शहीद अस्पताल की स्थापना का श्रेय भी उनको जाता है।
देश-विदेश से लोगों की माँग है कि:* डॉ सेन को बिना विलम्ब रिहा किया जाये और उनके विरोध में सारे मुक़दमे खारिज किये जाये* चात्तिस्गार्फ प्रदेश सरकार बिना विलम्ब प्रदेश में न्याय एवं शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए मुमकिन कदम उठाए और नक्सल एवं सलवा जुडूम की हिंसक गतिविदियों पर रोक लगे* प्रदेश सरकार सलवा जुडूम को समर्थन देना बंद करे* प्रदेश सरकार सब वर्गों के हित को ध्यान में रखे और ये भी ध्यान में रखे कि लोग नाक्सालवाद का समर्थन क्यो करते हैं?इसके पहले भी ये प्रदेश एक समर्पित कार्यकर्ता शंकर गुहा नियोगी को खो चुका है। ७ महीनों से बिना कोई ठोस सबूत के डॉ सेन जेल में कैद हैं, ये बेहद चिंता का विषय है। ये लोकतंत्र पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है जहाँ गरीब और कम्जूर वर्गों के हित की बात करने वालों की आवाज़ प्रदेश दबाने की कोशिश करता है।
Sunday, 25 November 2007
'नेताजी संबंधी जानकारी सार्वजनिक करें'
दिल्ली स्थित ‘मिशन नेताजी’ नामक संगठन ने ये याचिका दायर की थी
केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने गृह मंत्रालय को नेता जी सुभाष चंद्र बोस की 1945 में विमान हादसे में हुई मौत की जांच से संबंधित दस्तावेज़ तीन महीने के भीतर सार्वजनिक करने को कहा है.
मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला की अध्यक्षता में सीआईसी ने गुरूवार को गृह मंत्रालय के इस दावे को बिल्कुल निराधार करार दिया कि इन दस्तावेज़ों को सार्वजनिक किया गया तो इससे देश में अस्थिरता का माहौल फैल सकता है.
'कोरी कल्पना'
सीआईसी ने अपने 20 पन्नों के आदेश में कहा - "अब तक इन दस्तावेज़ों की संवेदनशीलता को लेकर कोई व्यापक अध्ययन नहीं किया गया है इसलिए मंत्रालय की यह दलील कोरी कल्पना लगती है कि दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने से गंभीर कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है."
सीआईसी का यह निर्णय दिल्ली स्थित ‘मिशन नेता जी’ नामक संगठन के सदस्य सायंतन दासगुप्ता की याचिका पर आया है.
अब तक इन दस्तावेज़ों की संवेदनशीलता को लेकर कोई व्यापक अध्ययन नहीं किया गया है इसलिए मंत्रालय की यह दलील कोरी कल्पना लगती है कि दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने से गंभीर कानून -व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है
केंद्रीय सूचना आयोग
दासगुप्ता ने ताइवान में विमान दर्घटना में हुई नेताजी की कथित मौत के मामले की जांच के लिए गठित शाहनवाज़ समिति (1956) और जीडी खोसला आयोग (1970-74) की रिपोर्टों को सार्वजनिक करने की मांग की थी.
हाल के मुख़र्जी आयोग ने पिछली रिपोर्टों से असहमति जताई थी.
सीआईसी ने अपने आदेश में गृह मंत्रालय को ये छूट दे दी है कि यदि अध्ययन के बाद वह पाए कि कुछ दस्तावेज़ देश की एकता और संप्रभुता को नुकसान पहुंचा सकते हैं तो वह उन्हें सार्वजनिक न करे.
आयोग ने यह भी कहा कि मंत्रालय को ऐसे दस्तावेज़ों को सार्वज़निक न करने का कारण 30 सितंबर तक बताना होगा.
दासगुप्ता ने 22 जून 2006 को गृह मंत्रालय के समक्ष प्रस्तुत एक प्रार्थना पत्र में उन दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग की थी जिनके आधार पर शाहनवाज़ समिति और खोसला आयोग 1945 में नेता जी की विमान हादसे में मौत संबंधी निष्कर्ष पर पहुँचे थे।
साभार बी बी सी