अलोका
आज
भाषणआज की व्यवस्था पर अर्ज
तमतमाया हुए चेहरे
सेट पकने लगे है
शब्द और ध्वनि
मुट्ठी बन्द
तने हुए हाथ
तलवार से कम नहीं वाणी की धार
खुलने का नाम नहीं लेती मुट्ठी
खत्म होने का नाम नही लेते
खौलते शब्द विचार
विचारों के पसीने से परीजता
सफेद कुरते का काॅलर
बढ़ी रही शरीर की थरथराहट
चेहरे की तमतमाहट‘ शब्दों की धार
अब साम्राज्यवाद पर हमला तय है।
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