अलोका
प्रिय माओ,
जोहार!
एक समय था,
जब सड़कों की दीवारों पर पैबस्त रहता था
चीन का चैयरमैन हमारा चेयरमैन
हसंते थे कुछ लोग
कुछ देते थे गाली भी
मैं नहीं जानता, माओ !
वो ठीक थे या ये
मगर आज कुछ ठीक नहीं है तेरे बगैर
चीन में सब बदल गया,
मगर नहीं बदला, तो मजदूरों की बदली हुई किस्मत
आज झारखंड में तुम्हारे और गांधी के गाने वाले
हर दिन सड़कों पर मिल जायेंगे
मगर उनमें
तुम तो कहीं भी नहीं दिखते
झाड़खण्ड से बिरसा को भी दे’ा निकाला दे दिया है
मगर बिरसा के गीत हर बार बज जाते हैं
बिरसा और तुम्हारे लोग
बहला दिये गये हैं
वो जानते हैं चेग्वेरा व तुम्हारे टी’ार्ट पहने वाले
फ्रेंच कट दाढ़ी वाले
सिगरेट हाथों में लिये
रोज तुम्हें बेच आते हैं वल्र्ड बैंक के हाथों
फिर भी खोज रहे हैं तुम्हें
लोग
तेरी रचनाओं से दूर
उनकी सपनों की दुनिया में
एक चेहरा है
जो तुम्हारी तरह ही लगता है
और
अंधेरे में झलक उठता है हर चेहरा
जिस पर लिखा होता है
हां! चुप रहो,
कुछ नहीं होगा तुमसे
झोला उठा लो अपना
चीन का चेयरमैन हमारा चेयरमैन
Monday, 25 August 2008
चेयरमैन माओ
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