Wednesday, 27 August 2008

मैने नि’चय किया


अलोका


हर रोज तुम्हारे यादों में कुछ किया करू
यादो में सब के सब समाया करू
विफल हो जाउ कोई बात नहीं
सभंल जाउ ऐ बात नही
करना था कि उसे कुछ कर के दिखाउ
वे वजह के तारिफ बाधं आये
करना था कुछ उसके लिए
जिसके दम पर हर रोज कहती थी एक कथा
कम पड़ गया था उस वक्त
खाली हो गयी थी
सभा
हार कैसे मान जाती
कि तुम भी कभी याद आते
हर पंक्ति मेें प्रेम गान गाते
उस वक्त का इन्तजार होता
जिस दिन यादो में बहार आते।
उस दिन गलिया भी गुनगुना रही होती थी
जान पावोगे तु इस वादी का हर शमा
याद के परिंदा बाध रहा

No comments: