न सोचा होगा।
शाहजहां
अपने प्यार वाली इमारत में
भारत की अर्थतंत्र सिमटेगा।
व्यापार पेट से जुडा होगा।
न सोचा होगा।
कि पत्नी की वियोग का स्थान
देश का भुख मिटाएगा।
लाखो लोगो का रोजगार
पूरे देश की अर्थ व्यवस्था
अब टिका है
शांहजहां के प्यार में
वो दुर से चल कर
प्यार को निहार लेता
साथ ही भारत के भूख को
सहारा वो दे देता।
अब झुकने लगे है प्यार
कि इमारत
थक चुका है
बड़ी आबादी का पेट
भरते भरते।
शाहजहां
अपने प्यार वाली इमारत में
भारत की अर्थतंत्र सिमटेगा।
व्यापार पेट से जुडा होगा।
न सोचा होगा।
कि पत्नी की वियोग का स्थान
देश का भुख मिटाएगा।
लाखो लोगो का रोजगार
पूरे देश की अर्थ व्यवस्था
अब टिका है
शांहजहां के प्यार में
वो दुर से चल कर
प्यार को निहार लेता
साथ ही भारत के भूख को
सहारा वो दे देता।
अब झुकने लगे है प्यार
कि इमारत
थक चुका है
बड़ी आबादी का पेट
भरते भरते।
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