Monday, 25 August 2008

प्राकृति

अलोका

प्राकृति से लगाव।
इसका अर्थ दुसरा है।
मैं प्राकृति के धुन
और गीत सुनती हूं।
झरने चलते जाते हैं।
छोडते जाते है शब्द ।
तान होती उसमें
गुजरते है जहां से
वातावरण जाता है। बदल-बदल सा
हर मोड पर
सभी के लिए।
धुन और तान एक समान है।
हवा भी साथ मेंतान मिलाती है
मानों पत्थर पर टकरा कर नये
सुर ताल बिखेर रहे हो।
लगता है मांदल पर
किसी ने कम्पन्न
पैदा कर दी हो।
पक्षी भी अपने
स्वर रोक नही पाते।
हर कोई की अपनी वाणी।
पिरोये होते सुर में ।
वृक्ष भी इस तान से
दुर नही रह पाता ।
मानों समूह के साथ
अपना स्वर मिला रहा
झिंगूर(कीडे+) भी धरती के
अन्दर स्वर मिलाते है।
जब पूरी वादी एक साथ
झुमर गीत का तान छेड चुका हो
हर कोई अपनी उपस्थिति दर्ज
वहां करा जाते है
यह भी एक युद्ध जैसा ही है।
वे अपने गीतों के माघ्यम से
एकता का ऐलान कर रहा।

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