Monday, 25 August 2008

खजूर की चटाई।

अलोका

नानी के गांव में
खजूर क पत्ते
और उसकी चटाई
आज जीवित है
सदियों के बाद सर्दियों में
ओढ़ने बिछाने के लिए
मेहमानों के स्वगत के लिए
सम्मान पूर्व बैठने के लिए
आंधी तूफान में खोजते खजूर की चट्टाई
बरसात की झड़ी में
ढ़कने के लिए है मात्र
खजूर की चटाई।
चटाई हर किसी के पास
खलिहान में बैठने की इच्छा
चटाई मिट्टी के उपर डाल
इतमिनान से बुढ़ी औरतें
जीवन को गाते- सुनाते
खजूर के पेड के पत्ते से अनुभव
शहर वापस आते वक्त
चटाई की सुगन्ध
महसूस करते है हम
खजूर की चट्टाई
दिसंबर की रात
जाड़े के साथ
नानी पास होती
खजूर की चटाई
ढ़क कर हमें सुलाती
कंप कपी के ठंड़
बढ़ता था रातों कों
चूल्हे पर लकड़ी
जला कर ठंड सेलडाई,
साथ में खजूर की चट्टाई
आंधी रात को
गांव के सब लोगों ने
खजूर की पत्ती के साथ
जीवन जीना सीख लिया था।
जब मै बड़ी हो गयी
याद करते है।
अपने नानी घर कि कथा
महसूस करते
उस गांव के मुगी- मुर्गी।
पक्षी और घास के दिन
बेल आम कि महक याद आती है।
याद आती है खजूर की चटाई

2 comments:

aarsee said...
This comment has been removed by the author.
aarsee said...

बहुत ही अच्छा लगा
इतनी भोली रचना पढकर


आपने शायद blogvani का लिंक नहीं लगाय है
उसे लगा लें